राजपथ पर छत्तीसगढ़ के पारम्परिक लोकवाद्य यंत्रों का प्रदर्शन

गणतंत्र दिवस के अवसर पर (26 जनवरी 2021) राजपथ परेड में छत्तीसगढ़ द्वारा भेजी गई झांकी में राज्य के दक्षिण में स्थित बस्तर से लेकर उत्तर में स्थित सरगुजा तक में विभिन्न अवसरों पर प्रयुक्त होने वाले लोक वाद्य यंत्रों को शामिल किया गया है।

इनके माध्यम से छत्तीसगढ़ के स्थानीय तीज त्योहारों तथा रीति रिवाजों में निहित सांस्कृतिक मूल्यों को भी रेखांकित किया गया है।

झांकी के ठीक सामने वाले हिस्से में एक जनजाति(हलबा) महिला बैठी है जो बस्तर का प्रसिद्ध लोक वाद्य धनकुल बजा रही है। धनकुल वाद्य यंत्र, धनुष, सूप और मटके से बना होता है। जगार गीतों में इसे बजाया जाता है।

झांकी के मध्य भाग में तुरही है। ये फूँक कर बजाया जाने वाला वाद्य यंत्र है, इसे मांगलिक कार्यों के दौरान बजाया जाता है। तुरही के ऊपर गौर नृत्य प्रस्तुत करते जनजाति हैं।

झांकी के अंत में माँदर बजाता हुआ युवक है।

झांकी में इनके अलावा अलगोजा, खंजेरी, नगाड़ा, टासक, बांस बाजा, नकदेवन, बाना, चिकारा, टुड़बुड़ी, डांहक, मिरदिन, मांडिया ढोल, गुजरी, सिंहबाजा या लोहाटी, टमरिया, घसिया ढोल, तम्बुरा को शामिल किया गया है।

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